Wednesday, 10 April 2013

नवरात्री में करनेकी सरल पूजा-विधि:-


नवरात्री में करनेकी सरल पूजा-विधि:-
एक सफ़ेद कागज पर निम्न यन्त्र दोर ले।
हल्दी में सक्कर मिश्रित दूध +हनी (मधु) +गौ मूत्र + गाय का घी मिलाकर , तुलसी की डाली से यन्त्र दोरे ।                       -:यन्त्र:-

                                                    श्रीं 

                                                  श्रीं श्रीं

                                               श्रीं श्रीं श्रीं 

                                             श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं 

                                          श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं  

                                       श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं 

                                     श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं  

पूजा विधि:- एक बाजोठ पर पिला रेशमी वस्त्र पसारकर ऊपर चनादाल की ढेरी पर कलश स्थापित करे, कलश में पानी डाले, पंचामृत, सोपारी,कमल ककड़ी ,पीले फुल .हल्दी .१ रुपिया ,इत्र  ..डाले ...ऊपर तांबे की थाली/डिश  रखकर यंत्र को स्थापित करे। फुल-चावल(हल्दी वाले ) चढ़ाये ।  धुप-दीप करे ।  निम्न मन्त्र का यथाशक्ति जाप करे ।         "ओम श्रीम श्रिये  नमः स्वाहा "बाद में निचे दिया हुआ स्तोत्र का ११ /२१ बार पाठ करे ।   आसन पीले रंग का ही उन/ रेशमी उपयोग में ले और पीले वस्त्र धारण करे  

श्री महालक्ष्मी अष्टकम

नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते !
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!१ ॥
नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी !

सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!२ ॥ 

सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी !
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!३ ॥
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी !
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!४॥
आध्यंतरहीते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी !
योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!५॥
स्थूल सुक्ष्मे महारोद्रे महाशक्ति महोदरे !
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते !!६॥
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी !
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते !!७॥
श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते !
जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!८॥
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:!
सर्वसिद्धि मवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा !!
एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम !
द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित: !!
त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम !
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम !!

नवरात्रि पूरी होने के बाद यंत्र को फ्रेमिंग करवाकर घरमे पूजा स्थान में रखे ॥ अस्तु॥ 


Tuesday, 26 March 2013

वैवाहिक जीवन को दुखी करनेमे ग्रहों के योग दान :


वैवाहिक जीवन को दुखी करनेमे ग्रहों के योग दान :=
 कौन से ग्रह वैवाहिक जीवन में पूर्ण सुख पाने में बधारूप है ? इस पर आज विचार करते है |
 कुंडली में पति या पत्नी का सुख सातवे भाव से देखा जाता है , शनि-राहु-केतु-सूर्य-मंगल पाप ग्रह है, अगर सातवे स्थान से या सातवे स्थान के मालिक से जब इन ग्रहों का सम्बन्ध होता हे तब वैवाहिक जीवन में सुख-शांति मिलने मे अवरोध-बाधाओका सामना करना पड़ता है , पूर्ण सुख मिल नहीं पाता है ....
सब से ज्यादा परेशानी बाधाए , राहु का सातवे स्थान या सातवे स्थान के मालिक से किसीभी प्रकार से कुंडली में  सम्बन्ध बनता है , तब अनुभव होती है , राहु अन्धकार है और जब वह सातवे स्थान में बेठता है , तो पति या पत्नी स्थान सम्बंधित शुभ फल मिलनेमे अवरोध कारक बनके ही रहता है , इस राहू के साथ मंगल का भी सम्बन्ध हो जाता है , तब तो भगवान ही बचाए | यह "अंगारक योग" लग्न जीवन में वियोग, विवाद, अपमृत्यु , तलाक तक की नोबत लेन में कारन रूप बनता दिखाई दिया है ..|
शनि का सम्बन्ध सातवे स्थान से विवाह में विलम्ब तक ही सिमित रहता है .....
अगर सातवे स्थान में शनि+ राहु के साथ अगर सूर्य या चन्द्र बेठता है, तो वैवाहिक जीवनमे सुख-शांति की आशा रखना ही व्यर्थ हो जाता है ..."विष योग" और "ग्रहण योग" होने से वैवाहिक जीवन को मानो ग्रहण सा  लग जाता अनुभव होता है ...
अगर कुंडली में ऐसा कोई भी योग बनता हो तो पहले इसके उपाय करे और कुंडली मिलकर ही शादी-विवाह सम्बंधित निर्णय ले तो संभवित अशुभ फलो को टाला जा सके |  
ग्रहों के उपाय सम्बंधित विचार फिर कभी .........|||

Tuesday, 19 March 2013

वैवाहिक जीवन को सुखी करने में ग्रहों का योगदान

वैवाहिक जीवन को सुखी करने में ग्रहों का योगदान:-  जन्म कुंडली में सातवे भाव से वैवाहिक जीवनका विचार किया जाता हे , वैवाहिक जीवन सुख मय रहेंगा या मन-मुटाव रहेंगा या और कोई बाधाए उपस्थित होंगी ? तो इसके लिए गुरु, शुक्र और मंगल का बारीकी से अभ्यास करना जरुरी है | १)गुरु:-  जन्म कुंडली में गुरु महाराज अगर  बलवान है , सप्तम स्थान को शुभ द्रष्टि कर रहे है , तो वैवाहिक जीवन  में बाधाए-परेशानीओ के बाद भी  अलगाव की स्थिति नहीं बनती है | गुरुदेव की कुंडली में शुभता दाम्पत्य जीवनमे चढाव-उतारके बादभी  बाधाओको दूर करते रहते है और जोडके रखते है | गुरु संतान का भी कारक है | अगर कुंडली में गुरु पाप-पीड़ित है तो पहले विवाह में विलम्ब-बाधाओका  सामना करना पड़ेंगा बाद में संतान सुख प्राप्ति में बाधा खड़ी होंगी |  इस लिए अगर कुंडली में गुरु महाराज पाप पीड़ित है तो संतान सुख प्राप्ति में बाधाओका अनुभव हो सकता है और दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्या आनेका संभव रहता है |......    २)शुक्र:- शुक्र वैवाहिक सुख का कारक ग्रह है ,अगर कुंडली में शुक्र बलवान है , शुभ स्थिति में है, अपनी स्व राशी या उच्च राशी में बेठा है , शुभ स्थान में स्थित है , शुभ ग्रहकी द्रष्टि में है तो दाम्पत्य जीवन में आपसी संबंधो में सुख की संभावना बढती  है | एक-दूजे के प्रति लगाव-आकर्षण बनाए रखता है |  अगर शुक्र कुंडली में पाप पीड़ित है , अशुभ स्थान में बेठा है , नीच राशी का है या मंगल-राहू से सम्बंधित है तो निच्श्चित ही वैवाहिक जीवन में मन-मुटाव , बाधाए खड़ी हो शक्ति है | कुंडली में शुक्र का किसीभी अशुभ स्थिति में होना पति और पत्नी में से किसीका भी अपने जीवन साथी के अलावा अन्यत्र संबंधो की और झुकाव होने की संभावना बढाता है | शुक्र की अशुभ स्थिति वैवाहिक जीवन में अलगाव तक की स्थिति खड़ी कर सकता है | ज्यादातर कुंडलीओमे ,जो  वैवाहिक  जीवन में समस्या ओका सामना कर रहा है, मन-मुटाव् खड़ा हुआ है या या बात अलग होने तक पहुची है , या वैवाहिक जीवन में हिंसा का सामना  करना पड़ रहा है , दाम्पत्य जीवन दुखी है, ऐसे किस्सोमे एक बात ,खास करके स्त्री की कुंडली में हमें देखने को मिली  हे की शुक्र का कही न कही मंगल और राहुसे सम्बन्ध बना होता है |  ३) मंगल:-कई लोग तर्क करते है की भाई मंगल का नाम ही मंगल है तो फिर वह क्या अमंगल करेंगा ? बात तो सही हे की भाई जिसका नाम ही मंगल है वह अमंगल कैसे कर सकता है, पर जब बात वैवाहिक जीवन की आती है तब मंगल देव की, कुंडली में  स्थिति शुभ है या अशुभ है वह देखना बहुत जरुरी हो जाता है | हमारे पास जो भी वैवाहिक जीवनकी समस्या लेकर आते है, और खास करके स्त्री वर्ग की कुंडलियो में हमें मंगल के साथ राहू का सम्बन्ध अवश्य देखने को मिला है , जब यह योग बहुत अशुभ होकर बना हुआ है, तब ज्यादातर किस्सों में डिवोर्स तक की नोबत आ जाती है | वैवाहिक जीवन दुखी-दुखी हो जाता है |   कुंडली मिलान मे भी मंगल का दोष पहले देखा जाताहै , मंगल का दोष के कारन वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आनेकी संभावनाए ज्यादा बढती है | सही तरीके से कुंडली मिलन होने पर मंगल दोष का उपाय तो मिल जाता है लेकिन अगर आगे बताया इसी प्रकार अगर मंगलदेव का शनि या राहू से किसी भी प्रकार से अशुभ सम्बन्ध कुंडली में बनता है तो फिर तो ज्यादा परेशानी वाली बात हो जाती है |

  
    

Sunday, 3 February 2013



   मेरे लिए  नौकरी अच्छी या व्यवसाय ? अगर व्यवसाय अच्छा हे तो स्वतन्त्र या पार्टनर शिप में ? देश में या विदेश में ? व्यवसाय में कौनसा क्षेत्र अच्छा रहेंगा ? 

 ज्यादातर यही सवाल सब के मनमे उठते रहते हे , और यही सवाल  हमारे पास भी आते हे ...
 ज्योतिष शास्त्र में यह सवाल के जवाब  विस्तारसे दिए गए हे . और वह इतने सही अनुभव होते हे की इस दिव्य शास्त्र के सामने नत-मस्तक हो जाताहू।  हमारे ऋषि मुनि ओने कितनी तपस्या करके , कष्ट उठाके मानव जातिके कल्याण के लिए यह दिव्य शास्त्र की हम को भेट दी हे।।उन दिव्य आत्मा ओको  कोटि-कोटि प्रणाम।   

जिन्दगी की गाड़ी को चलाने के लिए रोजगार की जरूरत सभी को होती है. रोजगार का चुनाव सही होता है तो व्यक्ति को कम परेशानी में जल्दी सफलता मिलती है. रोजगार की तलाश में ज्योतिष विज्ञान आपके लिए किस प्रकार सहायक हो सकता है आइये देखें.न सा व्यवसाय मेरे 

    दशम भाव में अलग-अलग ग्रह नोकरी-व्यवस्य संबंधी  क्या फल देते हे? आइए देखे ....

    कुण्डली के दशम भाव में  सूर्य होने पर पिता अथवा पैतृक सम्पत्ति से लाभ मिलता है , सूर्य का सम्बन्ध राज्य सत्ता और पद-प्रतिष्ठा  से हे , अगर दशम स्थान में  सूर्य बलवान और शुभ योग में हे तो पद-प्रतिष्ठा  की प्राप्ति कराता हे , सरकारी कार्यो से लाभ होता हे।

    चन्द्रमा अगर इस भाव में हो तो माता एवं मातृ पक्ष से लाभ की संभावना बनती है. चन्द्रमा से सम्बन्धित क्षेत्र में कामयाबी की प्रबल संभावना रहती है। जल सम्बंधित व्यवसाय से लाभ होता हे। खेती, रंग-रसायन, जल में पैदा होने वाली चीज वस्तुए ,मोती, दूध और दूध की बनावट , डेरी उद्योग,  ... 

   मंगल की उपस्थिति दशम भाव में होने पर विरोधी पक्ष से लाभ मिलता है.
रक्षा विभाग अथवा अस्त्र शस्त्र के कारोबार से लाभ होता है।मंगल हिम्मत और साहस का कारक हे, जमींन-मकान सम्बंधित व्यवसाय से लाभ करता हे, सीमेंट-क्वोरी-टाईल्स-सेनेटरी गुड्स-अग्नि सम्बंधित कार्य क्षेत्र से लाभ करवाता हे।

    बुध दशम भाव में होने पर मित्रों से लाभ एवं सहयोग मिलता है. बृहस्पति की उपस्थिति होने पर भाईयों से सुख एवं सहयोग मिलता है। बुध बुध्धि का करक हे। लेखन-वाचन  सम्बंधित व्यवसाय ,साहित्य प्रकाशन ,वकीलत, शिक्षा संबंधी क्षेत्र ,ज्योतिष, शिक्षक ,कमिशन, दलाली, शेअर बाजार ...

    बृहस्पति से सम्बन्धित क्षेत्र में अनुकूल लाभ मिलता है। धर्म संस्थान , शिक्षण , आराम प्रिय नोकरी, गृह उद्योग ,कायदा-चेरिटेबल ट्रस्ट ,कर्म-कांड,धर्म गुरु,  ...

   शुक्र सौन्दर्य एवं कला के क्षेत्र में तरक्की देता है। कला के क्षेत्र में अगर सफल होना हे तो शुक्र का बलवान होना जरुरी हे। आनंद-प्रमोद, खेल-कूद, नाटक-रंगमंच, स्रुंगर, मनोरंजन,संगीत, अभिनय, महेफिल, होटल-मोटेल ....

    शनि की स्थिति दशम में होने पर परिश्रम से कार्य में सफलता मिलती है. टूरिज्म के कारोबार में कामयाबी मिलती है. लोहा, लकड़ी, सिमेंट, रसायन के काम में सफलता मिलती है। दशम स्थान में अगर शनि हे , और राजयोग करक बनके बेठा  हे तो जीवन में अच्छी तरक्की करवाता हे, मान-स्टेटस देता हे, लोकप्रियता देता हे, जनहित के कार्य होते हे, अगर बलवान नहीं हे तो चडती-पड़ती का  अनुभव होता हे।

    दशम स्थान में राहू-केतु शत्रु पीड़ा देने का संभव रहताहे, विरोधिओसे हानी होती हे, कोर्ट-कचहरी सम्बन्धी कार्य में सफलता मिलनेमे बाधा आती रहती हे, जन्म भूमिसे दूर जाकर जातक का भाग्योदय होता हे।   

Saturday, 10 November 2012

ધનતેરશ થી ભાઈબીજ સુધીનો પાંચ દિવસ ની સરળ પૂજા


સંવત 2068 ના દિવાળી ના મુહુર્ત :---

       તારીખ:- 11-11-2012 , રવિવાર ; આસો વદ-13 ; સ્ટા . ટાઇમ :- 13-28 થી    તેરશ નો આરંભ થાય છે ...સ્ટા  . ટાઈમ 13-47 થી 15-12 સુધી શુભ ચોઘડિયું  ;18-00 થી 22-47 સુધી શુભ ,   અમૃત અને 
ચલ  ચોઘડિયા માં ચોપડા  લાવવા તથા ગાદી બિછાવવા માટે  શુભ છે ...

       શ્રી મહાલક્ષ્મી પૂજનનું મુહુર્ત :-

તારીખ :- 13-11-2012 ના મંગળવારે , આસો  વદી ; તેરસ ના પ્રદોષ કાળ અને નિશીથ કાલ વ્યાપિની અમાવાસ્યા હોવાથી આ દિવસે લક્ષ્મી પૂજન કરવું શુભ છે ..સ્ટા . ટાઇમ  :- 18-00 થી 19-42 સુધી પ્રદોષ કાળ છે ;જેમાં સ્ટા . ટાઇમ  :- 18-19 થી 18-32   સુધી નો સમય ઉત્તમ   છે ..સ્ટા . .ટાઇમ :- 19-36 થી 21-12 લાભ ચોઘડિયું ; સ્ટા . ટાઈમ:-22-47 થી 27-35 સુધી શુભ , અમૃત ,ચલ ચોઘડિયા છે ..સ્ટા  . ટાઇમ :- 23-58 થી 24-49 સુધી નિશીથ કાલ છે ...

        દિવાળી ધન-સમૃદ્ધિ નો તહેવાર છે ..આ તહેવાર માં શ્રી ગણેશ , શ્રી મહા લક્ષ્મી  અને ધનાધિપતિ કુબેર ભગવાન ની પૂજા કરવાનું શાસ્ત્ર માં વિધાન છે ..આ સાથે-સાથે માં સરસ્વતી અને મહા કાલી ની પણ પૂજા કરવામાં આવે છે ..જે માતાજીના અનુક્રમે સાત્વિક અને તામસિક સ્વરૂપ છે ...દિવાળી ની રાત્રીના શ્રી ગણેશ જી ની પૂજા કરવાથી સમૃદ્ધિ અને જ્ઞાન મળે છે , જેનાથી આપણ ને ધન કમાવવાની પ્રેરણા મળે છે ..અને ધનનો સદ ઉપયોગ કરવાની બુદ્ધિ મળે છે ... મહા લક્ષ્મી માતા પ્રસન્ન થઇ ધન નું વરદાન આપે છે અને કુબેર ભગવાન ધન નો સંગ્રહ કરવામાં સહાય રૂપ થાય છે , એટલે જ શ્રી ગણેશ , માં લક્ષ્મી અને શ્રી કુબેરજી ની પૂજા કરવા માં આવે છે ...

       દિવાળી માં કરવાની સરળ અને લાભ કારક વિધિ અહી રજુ કરું છું ..જેને શ્રદ્ધા પૂર્વક કરવાથી મનો કામના પૂર્ણ થાય છે ..
      
      

   ધનતેરશ થી ભાઈબીજ સુધીનો પાંચ દિવસ ની સરળ  પૂજા બતાવું છું, જે શ્રદ્ધા થી કરી શકાય ..

 1) ધન તેરશ:- આં દિવસે પૂજા ના સમયે પાંચ દિવેટ સાથે એક થાળી માં આરતી તૈયાર કરવી .. થાળીમાં એક સ્વસ્તિક કંકુ થી દોરવો , અને ''શ્રીમ'' કંકુ થી લખવું , મંદિર માં ધૂપ-દીપ કરવા , આપણું  મુખ પૂર્વ/ઉત્તર માં રહે તે રીતે  સામે   એક પાટલા ઉપર લાલ રેશમી વસ્ત્ર પાથરી જમણા  હાથે ઘઉં ની ઢગલી કરી અથવા અષ્ટ દલ બનાવી તેના ઉપર શ્રી ગણેશ ની મૂર્તિ/ ફોટો જે કઈ હોય તે મુકવું ,  આમાંથી કઈ ના હોય તો એક નાની ડીશ માં ત્રણ સોપારી ગોઠવી ને  મુકવી અને તેની ઉપર કંકુ ના ચાંલ્લા અનામિકા આંગળી થી કરવા , ફૂલ-ચોખા ચઢાવવા . હવે ડાબા હાથે ચોખા ની ઢગલી/અષ્ટ-દલ કરવું તેની ઉપર માતાજી નો ફોટો/શ્રી યંત્ર/ મૂર્તિ ..જે હોય તે સ્થાપિત કરવું . આગળ એક તાંબાનો કળશ તૈયાર કરી મુકવો ..કળશ ને નાડાછડી ગોળ બાંધવી , કળશ  માં સોપારી ,સવા રૂપીઓ ,કંકુ-ચોખા ,કમળ-કાકડી , ફુલ ,પધરાવવા , નાગરવેલ કે આસો પાલવ ના પાન  ગોઠવવા (પાન  ની દાંડી અંદર ના ભાગે રાખવી ),,. કળશ પર એક શ્રીફળ ખાલી ઉપરની ટોચ દેખાય તે રીતે ચુંદડી વીટાળીને ગોઠવવું . તેની ઉપર પોતાનાં  કુળ  દેવી  નું ધ્યાન કરી બેસાડવા . ફૂલ -ચોખા, કંકુ-હળદર ચડાવવા ,    બાદ  નીચે નાં  મંત્ર યથા શક્તિ અથવા 108 વખત કરવા  .
 1)  "ઓમ શ્રીમ ઓમ હ્રીમ શ્રીમ હ્રીમ કલીમ શ્રી કલીમ ઓમ વિત્તેશ્વરાય નમઃ "
      2)    "ઓમ હ્રીમ શ્રીમ કલીમ મહાલક્ષ્મ્યે   નમઃ સ્વાહા"
 બાદ આરતી  ઉતારવી . આરતી બાદ લક્ષ્મી સ્તોત્ર/ શ્રીસુકત ના પાઠ  થાય તો કરવા , માતાજી ની ક્ષમાં-યાચના કરવી , આરતી ઠરી જાય એટલે કંકુ એક ડબી માં ભરી લેવું .
  2) કાળીચૌદશ :-   આજે આરતીની થાળીમાં બે સ્વસ્તિક દોરવા અને બે ''શ્રીમ '' કંકુ થી લખવા , બાદ શ્રી ગણેશ અને માતાજી ની ફૂલ-કંકુ-ચોખા થી પૂજા કરવી , ધૂપ-દીપ પ્રકટાવવા ,બાદ  નીચે આપેલા મંત્ર ના 108 વખત જપ કરવા .
1)  "ઓમ હ્રીમ બટુકાય  આપદ ઉદ્ધારણાય કુરુ કુરુ બટુકાય હ્રીમ ઓમ"
 2) "ઓમ નમઃ કમલ વાસિન્ય્યે સ્વાહા"
       બાદ માતાજી ની ઉપર તૈયાર કરેલી થાળી  વડે આરતી ઉતારવી , ક્ષમાં -પ્રાર્થના કરાવી , આરતી  ઠરી જાય એટલે કંકુ સાફ કરીને ડબીમાં ભરી લેવું ... 
3) દિવાળી :--- આજે ત્રણ" સ્વસ્તિક" અને ત્રણ "શ્રીમ"  લખીને આરતી ની થાળી તૈયાર કરવી ,  બાકી પૂજા પ્રમાણે  પુજાદી  કાર્ય બાદ નીચે આપેલ  મંત્ર ની માળા કરવી
        "ઓમ શ્રીમ હ્રીમ શ્રીમ કમલે કમલાલયે પ્રસીદ પ્રસીદ શ્રીમ હ્રીમ શ્રીમ ઓમ મહાલક્ષ્મ્યે નમઃ"
 બાદ આરતી ઉતારવી , અને કંકુ ભરી લેવું ...
4)બેસતું વર્ષ:---આજે ચાર" સ્વસ્તિક" અને ચાર "શ્રીમ" કરીને આરતી ની થાળી તૈયાર કરવી .બાકી ની ઉપર પ્રમાણે નિત્ય પુજાદી કાર્ય કર્યા  બાદ નીચે નાં મંત્ર ની માળા   કરવી
  1)"ઓમ શ્રીમ હ્રીમ શ્રીમ કમલે કમલાલયે પ્રસીદ પ્રસીદ શ્રીમ હ્રીમ શ્રીમ ઓમ મહાલક્ષ્મ્યે નમઃ"
   2) "ઓમ ધનદાયે  સ્વાહા"
 બાદ  વિધિ પૂરી કરી ને આરતી ઠર્યા બાદ  કંકુ ડબી માં ભરી દેવું ...   

Wednesday, 7 November 2012

प्रेम और हस्त रेखा विज्ञान


दिल का मामला बड़ा ही नाजुक होता है जरा सी आंच लगी नहीं कि यह तार तार होकर बिखर जाता है और जुदा हो जाते हैं दो दिल। दिल टूट जाने के बाद आप किसी को भी दोष दें लेकिन हस्त रेखा विज्ञान कहता है अगर ऐसा होता है तो यह आपकी हाथ की रेखाओ में लिखा है। तो देखिये क्या कहती है आपकी प्रेम रेखा!


जीवन में प्रेम को जो स्थान प्राप्त है उसे हस्त रेखा विज्ञान भी सम्मान देता है। युगों से कितने प्रेमी आये और चले गये मगर प्रेम जिन्दा है और प्रेमी प्रेम के गीत गुनगुनाते जा रहे हैं। प्रेम का यह भी शाश्वत सच है कि "यह किसी किसी को पूरी तरह अपनाता है, अक्सर तो यह एक लौ दिखाकर सब कुछ जला देता है"।


आपने देखा होगा कि प्रेमी एक दूसरे की खातिर अपना सब कुछ लूटा देने को तैयार रहते हैं परंतु वक्त कुछ ऐसा खेल खेल जाता है कि प्रेमियों को एक दूसरे से जुदा होकर विरह की आग में जलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सामुद्रिक ज्योतिष के विद्वान कहते हैं कि हमारी हथेली में कुछ ऐसी रेखाएं हैं जो किसी को महबूब से मिलाती है तो fकसी को जीवन भर का दर्द दे जाती है

हस्त रेखा विज्ञान के जानकार कहते हैं। अगर हथेली में हृदय रेखा को कोई अन्य रेखा काटती हो तो प्रेमियों का मिलना मुश्किल होता है । हृदय रेखा लहरदार या जंजीर के समान दिखाई देती हो तब भी प्रेम में जुदाई का ग़म उठाना पड़ता है।


हस्तरेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ हो, उस पर तिल का निशान हो या द्वीप हो तो प्रेमियो के बीच में परिवार की मान्यताएं और अन्य कारण बाधक बनते हैं जिससे प्रेमियो के मिलन में बाधा आती है । अगर आपकी हथेली में हृदय रेखा पर द्वीप का निशान हो, जीवन रेखा को कई मोटी मोटी रेखा काट रही हो अथवा चन्द्र पर्वत अत्यधिक विकसित हो तो आपकी शादी उससे नहीं हो पाती है जिनके साथ आप जीवन बिताना चाहते हैं यानी यह रेखा इस बात संकेत देती है कि आपको मनपसंद जीवन साथी नहीं मिलने वाला है।


हथेली दिखने में काली है और सख्त भी तो प्रेमी प्रेमिका में प्रेम पूर्ण सम्बन्ध नहीं रहता क्योंकि उनके विचारों में सामंजस्य नहीं रहता फलत: प्रेमी प्रमिका स्वयं ही एक दूसरे से सम्बन्ध तोड़ सकते हैं। गुरू की उंगली छोटी हो एवं मस्तिष्क रेखा का अंत चन्द्र पर्वत पर हो अथवा भाग्य रेखा एवं हृदय रेखा मोटी है तो परिवार के लोगों द्वारा प्रेमी प्रेमिका के बीच ग़लत फ़हमी पैदा होने से प्रेम के नाजुक सम्बन्ध में बिखराव आ जाता है।


अगर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रेम की डोर टूटने वाली है तो देखिये कहीं आपकी हथेली में मंगल पर्वत और बुध के स्थान पर रेखाओं का जाल तो नहीं है अथवा भाग्य रेखा टूटी हुई या मोटी पतली तो नहीं है। अगर रेखाएं इन स्थितियों में हैं तो प्रेम के पंक्षी एक घोंसले में निवास नहीं करते यानी दोनो को बिछड़ना पड़ता है।


हस्त रेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर आपके बीच  बात बात में तू-तू मैं -मैं होती है और स्थिति यहां तक पहुच गयी है कि आप एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो इसका कारण यह हो सकता है कि आपकी हथेली में मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर हो अथवा भाग्य रेखा व हृदय रेखा सामान्य से अधिक मोटी हो। इसके अलावा इस स्थिति का कारण यह भी हो सकता है कि भाग्य रेखा कहीं मोटी कहीं पतली हो या बृहस्पति की उंगली सामान्य से छोटी हो।


हस्त रेखा ज्योतिष में जब हथेली में ऐसी रेखा देखी जाती है तो प्यार के रिश्तों में बिखराव का अनुमान लगाया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि प्रेमियो को रेखाओं के कारण जुदाई का ग़म उठाना ही पड़े क्योंकि अगर मर्ज है तो इसका ईलाज भी मौजूद है। आप आपके रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं अथवा आपका प्रेमी आपको छोड़कर जा रहा है तो किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से सम्पर्क कीजिए। जोकि वह आपकी कुंडली का अभ्यास करके प्रेम मार्गमे आगे बढ़नेमे बाधा रूप ग्रह की शांति के सही-सही उपाय बता सके और इछ्छित फलकी प्राप्ति सहज हो .. ।












Wednesday, 22 August 2012

केमद्रुम योग (Kemadruma Yoga)

केमद्रुम योग ज्योतिष में चंद्रमा से निर्मित एक महत्वपूर्ण योग है. वृहज्जातक में वाराहमिहिर के अनुसार यह योग उस समय होता है जब चंद्रमा के आगे या पीछे वाले भावों में ग्रह न हो अर्थात चंद्रमा से दूसरे और चंद्रमा से द्वादश भाव में कोई भी ग्रह नहीं हो.

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है और ऎसे में व्यक्ति में चिन्ता करने की प्रवृति अधिक होती है.  इसी प्रकार के फल केमद्रुम योग देता है.

केमद्रुम योग कैसे बनता है:---------



यदि चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश दोनों स्थानों में कोई ग्रह नही हो तो केमद्रुम नामक योग बनता है या चंद्र किसी ग्रह से युति में न हो या चंद्र को कोईशुभ ग्रह न देखता हो तो कुण्डली में केमद्रुम योग बनता है. केमद्रुम योग के संदर्भ में छाया ग्रह राहु केतु की गणना नहीं की जाती है.


इस योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति जीवन में कभी न कभी दरिद्रता एवं संघर्ष से ग्रस्त होता है. इसके साथ ही साथ व्यक्ति अशिक्षित या कम पढा लिखा, निर्धन एवं मूर्ख भी हो सकता है. यह भी कहा जाता है कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष का उचित सुख नहीं प्राप्त कर पाता है. वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है. परिजनों को सुख देने में प्रयास रत रहता है. व्यर्थ बात करने वाला होता है. कभी कभी उसके स्वभाव में नीचता का भाव भी देखा जा सकता है.


केमद्रुम योग के शुभ और अशुभ फल:---


केमद्रुम योग में जन्‍म लेनेवाला व्‍यक्ति निर्धनता एवं दुख को भोगता है. आर्थिक दृष्टि से वह गरीब होता है.  आजिविका संबंधी कार्यों के लिए परेशान रह सकता है. मन में भटकाव एवं असंतुष्टी की स्थिति बनी रहती है.  व्‍यक्ति हमेशा दूसरों पर निर्भर रह सकता है. पारिवारिक सुख में कमी और संतान द्वारा कष्‍ट प्राप्‍त कर सकता है. ऐसे व्‍यक्ति दीर्घायु होते हैं.

केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग संघर्ष और अभाव ग्रस्त जीवन देता है.  इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे दुर्भाग्य का सूचक कहते हें. परंतु लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है.  केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं. वस्तुतः अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं. यदि इसके सकारात्मक पक्ष का विस्तार पूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है. इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले योगों पर ध्यान देना आवश्यक है तत्पश्चात ही फलकथन करना चाहिए.


केमद्रुम योग का भंग होना :---------

जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र में चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग माना जाता है.  योग भंग होने पर केमद्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.  कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्‍थान में हो या चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्‍त हो या पूर्ण चंद्रमा लग्‍न में हो या चंद्रमा दसवें भाव में उच्‍च का हो या केन्‍द्र में चंद्रमा पूर्ण बली हो अथवा कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है. यदि चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.
कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है.


केमद्रुम योग की शांति के उपाय :-------

केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने हेतु कुछ उपायों को करके इस योग के अशुभ प्रभावों को कम करके शुभता को प्राप्त किया जा सकता है. यह उपाय इस प्रकार हैं-

      (1) सोमवार को पूर्णिमा के दिन अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के समय से लगातार चार वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखें.

       (2) सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं व पूजा करें.  भगवान शिव ओर माता पार्वती का पूजन करें. 

      (3) रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र " ऊँ नम: शिवाय" का जप करें ऎसा करने से  केमद्रुम योग के अशुभ फलों में कमी आएगी.

      (4) घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करके नियमित रुप से श्रीसूक्त का पाठ करें.  दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उस जल से देवी लक्ष्मी की मूर्ति को 
स्नान कराएं तथा चांदी के श्रीयंत्र में मोती धारण करके उसे सदैव अपने पास रखें  या धारण करें.


  कुंडली में मुख्यत: दो प्रकार के योग होते हैं- शुभ योग और अशुभ योग। अशुभ योगों में से 

एक है केमद्रुम योग। केमद्रुम योग चंद्रमा के आजू-बाजू [अगल-बगल] में किसी भी ग्रह के न 

होने से बनता है। इसमें राहु या केतु को नहीं माना गया है। 

   इसका मुख्य कारन यह समजा जाता हे की, चन्द्रमा जो हे वह पर-प्रकाशित हे, सूर्य 

भगवान की रोशनी पड़ने पर वह प्रकाशित दिखता हे, अतः स्वयं अपना कोई पूर्ण वजूद न 

होने के कारण, भी जब उसके आजू-बाजु जब कोई ग्रह  नहीं होता तब वह निर्बल माना जाता 

हे , और अकेला शुभ फल देनेमे समर्थ नहीं बनता ...

   चन्द्रमा जो मनका कारक हे, उसका कुंडली में बलवान होना जरुरी माना जाता हे। सूर्य 

आत्म  कारक  हे, उसका बलवान हो न भी आवश्यक हे, अतः सूर्य-चन्द्र के बला-बल पर ही 

कुंडली शुभा-शुभ फल देने में समर्थ बनती हे। 

   सूर्य-चन्द्र के साथ कुंडली में जब राहू-केतु, शनि का सम्बन्ध बनता हे , युति-प्रतियुति या 

द्रष्टि से योग बनता हे वह भी "विष-योग" होने के कारन कम-द्रुम योग जेसाही फल प्रदान 

करता हे।  

  ग्रहों के वर्गीकरण अनुसार शुभ ग्रह [गुरू, शुक्र, चंद्र, बुध] शुभ फल ही प्रदान करेंगे और 

पाप ग्रह सूर्य, शनि कुंडली में ग्रहों की स्थिति, युति, बलाबल के आधार पर अशुभ फल देंगे। 

अर्थात पूर्ण कुंडली का बारीकी से अध्ययन किए बिना और आधार पर निर्णय गलत हो सकता 

है। इसलिए ज्योतिषियों को चाहिए कि केवल एक योग के आधार पर ही फलादेश करने की 

बजाए कुंडली का पूर्ण आकलन करें।


धर्म और ज्योतिष व्यक्ति को भ्रमित नहीं करता। अपितु मार्ग दर्शन करते हैं। इसका उपाय 

करने से दोष परिहार हो जाता है। अपने व्यक्तित्व, परिश्रम, शुभ-कर्म और ईश्वर पर अटूट 

श्रद्धा, विश्वास से जीवन को सुखमय बना सकते हैं।

   निम्न परिस्थितियों में केमद्रुम योग भंग माना जाता है-

1. यदि कोई ग्रह जन्म लग्न में केंद्र में हो।

2. चंद्रमा जन्म लग्न में [प्रथम] हो।

3. कोई ग्रह चंद्र से लग्न में हो अर्थात चंद्र से युक्त हो।

4. चंद्र को सभी ग्रह देखते हों।

5. चंद्र शुभ ग्रह से युक्त हो और गुरू द्वारा दृष्ट हो।

6. पूर्ण बली चंद्र शुभ स्थान में हो तथा शुभ ग्रह के साथ हो।



केमद्रुम योग  इतना अनिष्टकारी नहीं होता जितना कि वर्तमान समय के ज्योतिषियों ने इसे बना दिया है. व्यक्ति को इससे भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह योग व्यक्ति को सदैव बुरे प्रभाव नहीं देता अपितु वह व्यक्ति को जीवन में संघर्ष से जूझने की क्षमता एवं ताकत देता है, जिसे अपनाकर जातक अपना भाग्य निर्माण कर पाने में सक्षम हो सकता है और अपनी बाधाओं से उबर कर आने वाले समय का अभिवादन  कर सकता है.