Tuesday, 26 March 2013

वैवाहिक जीवन को दुखी करनेमे ग्रहों के योग दान :


वैवाहिक जीवन को दुखी करनेमे ग्रहों के योग दान :=
 कौन से ग्रह वैवाहिक जीवन में पूर्ण सुख पाने में बधारूप है ? इस पर आज विचार करते है |
 कुंडली में पति या पत्नी का सुख सातवे भाव से देखा जाता है , शनि-राहु-केतु-सूर्य-मंगल पाप ग्रह है, अगर सातवे स्थान से या सातवे स्थान के मालिक से जब इन ग्रहों का सम्बन्ध होता हे तब वैवाहिक जीवन में सुख-शांति मिलने मे अवरोध-बाधाओका सामना करना पड़ता है , पूर्ण सुख मिल नहीं पाता है ....
सब से ज्यादा परेशानी बाधाए , राहु का सातवे स्थान या सातवे स्थान के मालिक से किसीभी प्रकार से कुंडली में  सम्बन्ध बनता है , तब अनुभव होती है , राहु अन्धकार है और जब वह सातवे स्थान में बेठता है , तो पति या पत्नी स्थान सम्बंधित शुभ फल मिलनेमे अवरोध कारक बनके ही रहता है , इस राहू के साथ मंगल का भी सम्बन्ध हो जाता है , तब तो भगवान ही बचाए | यह "अंगारक योग" लग्न जीवन में वियोग, विवाद, अपमृत्यु , तलाक तक की नोबत लेन में कारन रूप बनता दिखाई दिया है ..|
शनि का सम्बन्ध सातवे स्थान से विवाह में विलम्ब तक ही सिमित रहता है .....
अगर सातवे स्थान में शनि+ राहु के साथ अगर सूर्य या चन्द्र बेठता है, तो वैवाहिक जीवनमे सुख-शांति की आशा रखना ही व्यर्थ हो जाता है ..."विष योग" और "ग्रहण योग" होने से वैवाहिक जीवन को मानो ग्रहण सा  लग जाता अनुभव होता है ...
अगर कुंडली में ऐसा कोई भी योग बनता हो तो पहले इसके उपाय करे और कुंडली मिलकर ही शादी-विवाह सम्बंधित निर्णय ले तो संभवित अशुभ फलो को टाला जा सके |  
ग्रहों के उपाय सम्बंधित विचार फिर कभी .........|||

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